रामदीन लाला अपने पुराने खद्दर के कुर्ते और सफेद धोती में चारपाई पर बैठे हैं। पास ही गाँव के कुछ लड़के लकड़ी से लट्टू घुमा रहे हैं, और औरतें दूर से सब देखती हँस रही हैं।
पहलवान का ज़िक्र आते ही सबकी आँखों में चमक आ जाती है।
गुड्डी ताई, गाँव की हँसमुख महिला, हल्के मुस्कान के साथ बोलती हैं—
"अरे लाला, सुना है शहर से जो पहलवान आया है, वो तो बड़े-बड़े पहलवानों की भी हड्डी पसली एक कर देता है!"
"हड्डी पसली तोड़ने वाला आया है, तो रामदीन लाला क्या गुलगुले बेचने आए हैं?"
रामदीन लाला का चेहरा जोश में लाल हो गया है, पसीना माथे पर चमक रहा है।
शंभू काका, जो गाँव के सबसे बड़े गप्पू माने जाते हैं, उत्साहित होकर चिल्लाते हैं—
"लाला, देखके बैठो, धोती फिर खुल जाएगी, औरतें फिर हँसेंगी!"
"अरे काका, पहलवान की क्या औकात जब रामदीन की धोती खुद ही मुकाबला करने लगे!"
महिलाएँ आपस में फुसफुसाती हैं, और बच्चों की टोली जोर-जोर से ताली बजाती है।
पहलवान की चमकती काली मूँछें और चौड़ा सीना देखकर सबकी साँसें थम जाती हैं।
"अरे ओ पतलू, तू क्या लड़ेगा मुझसे? जा, जाकर अपनी बकरी चरा!"
रामदीन लाला की आँखों में अचानक आग सी जल उठती है। वे लाठी उठाकर पहलवान की ओर बढ़ते हैं।
"बकरी चराने वाला तुझे ऐसा घुमाएगा कि तू खुद बकरी चराने लगेगा!"
पहलवान पहली चाल चलता है, लेकिन रामदीन लाला बड़ी फुर्ती से बच जाते हैं और लाठी घुमाकर पहलवान की टाँगों के पास मारते हैं।
शंभू काका, हँसी रोकते हुए, चिल्लाते हैं—
"लाला, धोती मत छोड़ना! नहीं तो पहलवान के साथ-साथ हम सबकी भी इज्जत चली जाएगी!"
"इज्जत की फिक्र छोड़ो, जीत अपनी है!"
पहलवान ज़ोर लगाता है, लेकिन रामदीन लाला की चालाकी के आगे उसका दम निकल जाता है। अचानक, लाठी घुमाते हुए लाला पहलवान की धोती का सिरा खींच लेते हैं।
भीड़ ठहाका लगाती है, और पहलवान शर्म से मुँह छुपा लेता है।
गुड्डी ताई, हँसी रोकते हुए, कहती हैं—
"अरे, अब पहलवान अपनी धोती संभाले या लाला से कुश्ती करे!"
रामदीन लाला अपने सिर पर गमछा डालकर विजयी मुस्कान के साथ सबको नमस्ते करते हुए लाठी घुमाते जाते हैं।
शंभू काका पूरे गाँव को चुटकुले सुनाते हैं—
"देखो भाइयो, पहलवान की हड्डी तो लाला ने नहीं तोड़ी, पर इज्जत जरूर धोती के साथ बाँध ली!"
गाँव की गलियों में हँसी गूंजती रहती है, और रामदीन लाला की बहादुरी की कहानी सबकी जुबान पर चढ़ जाती है।